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खत
दो मुक्तक
बह्र 212 221 222 22
कौन कहता है कि तेरे खत है ये।
जानता हूं जान की आफत है ये।
बोलता है जब कभी बिन मुँह के ही
तब पता चलता है क्या शामत है ये।
खत दो
कौन हो शब्दों में पिरोते जो भाव को।
कौन हो शब्दों को देते जो भाव हो।
मौन हो हंसाते हो रुलाते हो हमें
खत नहीं, हरियाते भरते हो घाव को।
#सुनील_गुप्ता सीतापुर
#सरगुजा_छत्तीसगढ
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