रोला छंद मे एक रचना ।

हवा

हवा ।

क्या ख्याल है
हवा ने कहा
यदि एक  घंटे के लिए मैं
ठोस में बदल जाऊं?
तुम रोज बदलते हो अपना स्वभाव
मुझे दोगे इजाजत
अपना स्वभाव बदलने की
एक घंटे के लिए ।
एक घंटा क्यों
तीन मिनट के लिए ।
सिर्फ तीन मिनट .......
क्यों?
कांप उठी  रूह?
दम घुट जाएगा?
धरती के ऊपर एक परत
पहाड़ बन जाएगा
हवा का पहाड़ ।
और उसी में
दफन हो जाएगा आदमी ।
एक  घंटे के भीतर सब शांत।
एक घंटा क्यों  ........
एक  मिनट के भीतर।
शायद एक  मिनट भी बहुत होते हैं।

#सुनील_गुप्ता सीतापुर
#सरगुजा_छत्तीसगढ

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