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काव्य सृजन 01
विषय हमराही
तिथि 27 /3/ 18
दिन गुरुवार
विधा ग़ज़ल
222 221 222 22 (कोशिश )
कंधे से कंधा मिला दे, हमराही।
जीवन रंगीला बना दे हमराही।
जो हमको चाहे हटाना पथ ही से ।
चूलें ही उसकी हिला दे हमराही।
मारे पत्थर से जमाना भी गर तो।
पत्थर को भी जो गला दे हमराही ।
लाखों दीवाने जहां में हो उसके ।
दीवानों को जो भुला दे हमराही।
कुर्बानी मांगे कहीं भी ये दुनियाँ।
हँस कर जाँ दे दे रुला दे हमराही।
#सुनील_गुप्ता सीतापुर
#सरगुजा_छत्तीसगढ
#पाठशाला_काव्य_गुंजन
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