रोला छंद मे एक रचना ।

शहनाई (नवगीत )

नवगीत     सृजन
विषय     शहनाई
तिथि 21/4/18
वार        रविवार

सुरमई उजाला फैल रहा है
कहां बजी शहनाई ।
हो रहा आलोकित जीवन पथ
शुभ बेला देखो आई ।

लहरें मचल-मचल उठती हैं
बढ़ रही तरंगे वलयाकार।
कलियां खिल खिल कर फूल हो गए
बन गए ईश गले का हार ।
आज कोई कन्या दुल्हन बन
दूल्हे के घर आई ।

सुरमई उजाला फैल रहा है
कहां बजी शहनाई ।

अश्रु अश्रु ढुलक  रहे हैं
कहीं खुशी कहीं गम के ।
दुल्हन के दिल की बस्ती में
तारे बन खुशियाँ  चमके ।
मेहंदी रचकर बोल रही है
रख संभाल तरुणाई ।

सुरमई उजाला फैल रहा है
कहां बजी शहनाई ।

सुन रहे निःशब्द  निरंतर
पवन   बदली पर्वत वन। 
झरने झरकर स्वागत में
पल पल करते ज्यों नर्तन।
कलरव  करती चटकाली
जाने किधर से आई।

सुरमई उजाला फैल रहा है
कहां बजी शहनाई ।

आज तितलियां मस्त मगन है
प्यार की धुन में गाएँ
कहीं बैठकर करें ठिठोली
फिर फिर उड़ उड़ जाएँ।
फूलों में भी नई ताजगी
झलक पड़ी भर आई ।

सुरमई उजाला फैल रहा है
कहां बजी शहनाई ।

आज कहीं सपूत कोई
चढ़ा भेंट माता को।
सरहद के पहरे पर बैठा
मेट अस्तित्व नाता को ।
शोक में उसके  सम्मान के लिए
धुन दे रहा  सुनाई।

सुरमई उजाला फैल रहा है
कहां बजी शहनाई।

#सुनील_गुप्ता #सीतापुर
#सरगुजा_छत्तीसगढ

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